पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था | Padha Panchayat Shasan Vyavastha

Study Jharkhand PSCप्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों एवं पाठकों के लिए झारखण्ड का इतिहास के अंतर्गत पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था | Padha Panchayat Shasan Vyavastha से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत कर रहा है। यह आपको JPSC, JSSC एंव अन्य झारखण्ड राज्य आधारित परिक्षाओं मे सहायता करेंगी। पोस्ट के अंत मे Quiz है जो निचे दी हुई जानकारी पर आधारित है।पाठक गणों से अनुरोध है कि Quiz में जरूर भाग ले।

पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था | Padha Panchayat Shasan Vyavastha

पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था || Padha Panchayat Shasan Vyavastha under History of Jharkhand for JPSC, JSSC and other exams

पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था उरांव जनजाति की शासन व्यवस्था है। यह व्यवस्था को उरांव शासन व्यवस्था भी कहा जाता है। यह व्यवस्था मुण्डाओं कि शासन व्यवस्था से मिलती जुलती है।

छोटा नागपुर क्षेत्र मे उरांव जनजाति का आगमन मुण्डाओं के आगमन के कई सौ वर्षों के बाद हुआ था। ऐसा माना जाता है कि छोटा नागपुर मे बसने से पहले इनका निवास स्थल रोहतासगढ़ हुआ करता था। जब वे यहाँ बसने लगे तो यहाँ के जंगलों को साफ करके खेत बनाए और गांव बसाए। खेत बनाने और गांव बसाने वाले को भुंईहर बोला गया। गांव जब बने तो उनकी संचालन की आवश्यकता महसूस हुई। गांव के प्रशासनिक और धार्मिक संचालन की जिम्मेदारी पाहन को दी गई। वह गांव का पुरोहित होता है। उनकी सहायता के लिए बैगा को रखा गया।

समय के साथ यह व्यवस्था बदली और पाहन की सहायता के लिए महतो का पद सृजित किया गया। आगे चलकर प्रशासनिक और धार्मिक संचालन की जिम्मेदारी को दो भागों मे बांटा गया। महतो को प्रशासनिक संचालन की जिम्मेदारी दी गई और पाहन को धार्मिक संचालन की जिम्मेदारी दी गई। ग्राम स्तर पर पंचायत का निर्माण हुआ। इसके सदस्य गाँव के सभी खुँट के बुजुर्ग व्यक्ति होते है। यह पंचायत गांव में किसी भी प्रकार के निर्णय लेने में सक्षम होते है। उरांव जनजाति में यह माना जाता है कि धर्मेश (उरांव के इष्टदेव)  के बाद इस पृथ्वी पर पंचायत ही सर्वोच्च शक्ति है। समय के साथ यह व्यवस्था बहुत ही समृद्ध होती गई और यह व्यवस्था तीन स्तर पर कार्य करने लगी।

1. ग्राम पंचायत
2. पड़हा पंचायत
3. अंतर पड़हा पंचायत

1. ग्राम पंचायत

ग्राम स्तर की पंचायत व्यवस्था में निम्नलिखित महत्वपूर्ण व्यक्ति होते है।

  1. महतो – गाँव कि पंचायत व्यवस्था का प्रमुख होता है। प्रशासनिक संचालन की जिम्मेदारी होती है। यह पद वंशानुगत होता था और सबसे बड़े बेटे को ही मिलता था। वारिस नहीं होने कि स्थिती में उस वंश का कोई अन्य पुरूष को यह पद दिया जाता था।
  2. पाहन - गांव का पुरोहित होता है। धार्मिक संचालन की जिम्मेदारी होती है। यह पद वंशानुगत नहीं होता है। हर तीन वर्ष की समाप्ती के बाद सरहुल के दिन नये पाहन का चयन होता है।
  3. भण्डारी – संदेशवाहक होता है। और राजा गाँव में पड़हा राजा के भण्डार का प्रभारी होता है।
यह सारे पदों के लिए कोई वितिय प्रावधान नही था, परंतु भरण पोषण के लिए भूमि आवंटित कि जाती थी और उन भूमि के अलग अलग नाम थे जो निम्नलिखित है।
  1. महतोई भूमि - महतो को दि जाने वाली भूमि
  2. पहनई भूमि – पाहन को दि जाने वाली भूमि
  3. भण्डार गिरी भूमि – भण्डारी को दि जाने वाली भूमि

महतो और पाहन दोनो ही गाँव की पंचायत व्यवस्था के केंद्र बिंदु है। अपने आप मे दोनो ही अकेले कुछ नहीं है क्युंकि इनकी सारी शक्ति पंचायत मे निहित है। उरांव जनजाति कि एक प्रसिद्ध कहावत है “ पाहन गाँव बनाता है और महतो गाँव चलाता है ”

2.पड़हा पंचायत

गाँव कि पंचायत व्यवस्था के उपर भी एक व्यवस्था थी जिसे पड़हा पंचायत कहा जाता था। यह 7, 12, 21 या 22 गाँवों को मिलाकर बनती थी। पड़हा राजा इस पंचायत का प्रमुख होते थे। उनकी सहायता के लिए पंचायत में निम्नलिखित अधिकारी होते थे।

  1. दीवान  - पड़हा राजा के साहयक के रूप मे कार्य करते थे।
  2. मंत्री  –  यह पड़हा राजा को परामर्श देते थे।
  3. पनभरा    यह बैठको का संचालन करते थे एंव खाने पीने कि व्यवस्था करते थे।
  4. कोटवारयह दूत के रूप मे कार्य करते थे। पड़हा राजा के निर्देश को पूरे गांव में और बाहर के सूचनाओं को उनतक पहुंचाते थे। दण्ड का अमल भी इनसे करवाया जाता था।

पड़हा राजा और उनके अधिकारी जिस गाँव मे निवास करते थे उनके आधार पर गाँव का नामकरण होता था जो निम्नलिखित है।

  1. राजा गाँव – जिस गाँव मे पड़हा राजा का निवास स्थल होता था।
  2. दीवान गाँव - जिस गाँव मे दीवान का निवास स्थल होता था।
  3. पनेर गाँव - जिस गाँव मे पनभरा का निवास स्थल होता था।
  4. कोटवार गाँव - जिस गाँव मे कोटवार का निवास स्थल होता था।
  5. प्रजा गाँव - जिस गाँव मे कोई भी अधिकारी का निवास स्थल नहीं होता था।

3. अंतर पड़हा पंचायत

पड़हा पंचायत के उपर अंतर पड़हा पंचायत कि व्यवस्था थी। यह पंचायतें कई पड़हा गाँवों को मिलाकर बनाई जाती थी। इसके प्रमुख को पड़हा दीवान कहा जाता था।

समस्यों एंव विवादों का निपटारा

समस्यों एंव विवादों का निपटारा पहले गांव की पंचायत स्तर पर किया जाता है जो निम्नलिखित है।

  1. छोटे मोटे किसी भी प्रकार के विवादों का निपटारा - हत्या जैसे गंभीर अपराध छोड़ कर अन्य मामलों को गाँव मे ही सुलझाने का प्रयास होता है।
  2. विकास कार्य या गांव की समस्यों का निवारण।
  3. यौन अत्याचार के मामले।
  4. पारिवारिक झगड़े।
  5. जमीन जायदाद सम्बंधित मामले।
  6. धार्मिक पर्व त्योहार सम्बंधित फैसले – महतो की अध्यक्षता में ही पाहन द्वारा पर्व त्योहारों की तिथि निश्चित कि जाती है।
  7. पड़हा पंचायत या अंतर पड़हा पंचायत के निर्णय का अनुपालन करवाना।

विवाद नहीं सुलझने पर इसे पड़हा पंचायत में ले जाया जाता है। और अगर विवाद का निपटारा पड़हा पंचायत में भी नहीं हो सका तो उसे अंतर पड़हा पंचायत में भेज दिया जाता है। किसी भी मामले में पड़हा राजा या पड़हा दीवान महतो के आग्रह के बिना हस्तक्षेप नहीं करता है।

छोटे-मोटे अपराधिक मामलों में आर्थिक दंड देने का प्रावधान है। हत्या जैसे गंभीर अपराध का निपटारा इन पंचायतों में नहीं होता है। यौन अत्याचार या सामाजिक अपराध के लिए समाज से निष्कासित करने का दण्ड देने का भी प्रावधान है।

दो या दो से अधिक गाँव के बिच का विवाद पड़हा पंचायत मे किया जाता है।

उम्मीद है आपको पड़हा पंचायत शासन व्यवस्था | Padha Panchayat Shasan Vyavastha पर लिखी यह लेख अच्छी लगी होगी और कुछ जानकारी मिली होगी। फिर भी अगर कोई सवाल है तो बेझिझक कॉमेंट मे पुछे। आपकी सहयता करके खुशी मिलेगी। और अंत मे इस पोस्ट को शेयर करना बिल्कुल न भूले।

दोस्तों, Quiz मे भाग लीजीए और अपनी छ्मता जाँचे।


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