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छात्रों एवं पाठकों के लिए झारखण्ड का भूगोल । Geography of
Jharkhand के अंतर्गत झारखंड
की भूगर्भिक संरचना एंव इतिहास । Geological
History of Jharkhand (Geological Structure) से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत कर रहा है। यह आपको JPSC, JSSC एंव अन्य झारखण्ड राज्य आधारित परिक्षाओं मे सहायता करेंगी।
झारखंड की भूगर्भिक संरचना एंव इतिहास । Geological History of Jharkhand (Geological Structure)
झारखंड की भूगर्भिक संरचना का मतलब इस क्षेत्र के भीतर पाए जाने वाली धरातलीय तथा धरातल के नीचे की चट्टानों के स्वरूप एवं प्रकृति से है। चट्टानों के स्वरूप एवं प्रकृति उनके निर्माण की प्रक्रिया एंव आयु से निर्धारित होती है । यहाँ की भूगर्भीक संरचना काफी जटिल है । यहाँ सभी काल अर्थात: आद्य महाकल्प, पुराजीवी महाकल्प, मध्यजीवी महाकल्प और नूतन जीवी महाकल्प के अंतर्गत कुछ न कुछ भौगर्भीक घटनाएँ हुई है जिसके फलस्वरूप झारखंड की वर्तमान भू आकृति की रचना हुई है । इसे समझने के लिए भारत की भौगर्भीक संरचना के संदर्भ मे अधय्यन करना होगा क्योंकि झारखंड भारत का अंग है और भारत प्राचीन गोंडवाना भूखंड का हिस्सा है । इसका इतिहास पृथ्वी के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है।
भौगर्भीक समय सारणी
आगे बढ़ने से पहले भौगर्भीक समय सारणी के बारे जान लेना जरूरी है । भौगर्भीक समय सारणी एक मापन की प्रणाली है जिसका उपयोग करके पृथ्वी के प्राकृतिक इतिहास में हुई घटनाओं का समय अनुमान लगाया जाता है । इससे झारखंड की भूगर्भिक संरचना को समझने मे मदद मिलेगी ।
- पृथ्वी के निर्माण (460 करोड़ वर्ष पूर्व) से लेकर 54 करोड़ वर्ष पूर्व तक के कालखंड को आद्य महाकल्प (Pre Cambrian Era) कहा गया है ।
- 54 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर 25 करोड़ वर्ष पूर्व तक के कालखंड को पुराजीवी महाकल्प (Paleozoic Era) कहा गया है । इस कालखण्ड को पुनः 06 अलग अलग कल्पों मे विभाजित किया गया है ।
- 25 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व तक के कालखंड को मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic Era) कहा गया है | इस कालखण्ड को पुनः 03 अलग अलग कल्पों मे विभाजित किया गया है ।
- 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर अब तक के कालखंड को नूतन जीवी महाकल्प (Cenozoic Era) कहा गया है | इस कालखण्ड को पुनः 06 अलग अलग कल्पों मे विभाजित किया गया है ।
भौगर्भीक समय सारणी | ||
---|---|---|
महाकल्प | कल्प | करोड़ वर्ष पूर्व |
नूतन जीवी महाकल्प (Cenozoic Era) | होलोसीन (Holocene) | 0.25 - 0 |
प्लीस्टोसीन (Pleistocene) | ||
प्लायोसीन (Pliocene) | 2.30 – 0.25 | |
मायोसीन (Miocene) | ||
ओलिगोसीन (Oligocene) | 6.60 – 2.30 | |
इयोसीन (Eocene) | ||
मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic Era) | क्रीटैसियस (Cretaceous) | 14.55 – 6.60 |
जुरैसिक (Jurassic) | 20.13 – 14.50 | |
ट्रियासिक (Triassic) | 25.21 – 20.13 | |
पुराजीवी महाकल्प (Paleozoic Era) | पर्मियन (Permian) | 29.89 – 25.21 |
कार्बानिफेरस (Carboniferous) | 35.89 – 29.89 | |
डेवोनियन (Devonian) | 41.92 – 35.89 | |
सिल्यूरियन (Silurian) | 44.34 – 41.92 | |
आर्डोविसियन (Ordovician) | 48.54 – 44.34 | |
कैम्ब्रियन (Cambrian) | 54.10 – 48.54 | |
आद्य महाकल्प (Pre Cambrian Era) | ---- | 460 – 54.10 |
झारखण्ड की धरातल का निर्माण अति प्राचीन या प्री–कैम्ब्रियन कल्प या आर्कियनकालीन चट्टानों से हुआ है । इसका विस्तार झारखंड के 90% भाग पर है । इन चट्टानों को आर्कियन और धारवाड़ क्रम मे वर्गीकृत किया जाता है ।
आर्कियन क्रम की चट्टानें
जब पृथ्वी ठंडी हुई तो आर्कियन क्रम की चट्टानों का निर्माण हुआ । यह सबसे प्राचीन चट्टानें है परंतु वर्तमान समय मे यह ग्रेनाइट, निस और शिष्ट के रूप मे रूपांतरित हो चुकी है । इसमे जीवाश्म नहीं मिलता है । यह रवेदार होती है ।
धारवाड़ क्रम की चट्टानें
कालांतर मे आर्कियन क्रम की चट्टानों का अपरदन और निक्षेपण हुआ और भारत की प्रथम रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण हुआ जिसे धारवाड़ क्रम की चट्टानें कहा जाता है । यह परतदार होती है और इसमे भी जीवाश्म नहीं होता है । इसे धात्विक खनिज का भंडारगृह भी कहा जाता है क्योंकि इस क्रम मे धात्विक खनिज प्रचुर मात्र मे पाई जाती है । धारवाड़ क्रम के चट्टानों की कई श्रेणियाँ है जो सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत मे फैली है । इन्ही श्रेणी मे से एक का विस्तार कोलहान क्षेत्र मे है जो उड़ीसा तक फैली हुई है जिसे लौह अयस्क श्रेणी कहा जाता है । इसका विस्तार कोलहान क्षेत्र मे होने के कारण झारखंड में इन्हें कोल्हान श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है।
धारवाड़ क्रम की चट्टानों के निर्माण के पश्चात, पुराण कल्प के चट्टानों का निर्माण हुआ है । इन चट्टानों को कुड़प्पा और विंध्यन क्रम की चट्टानों मे वर्गीकृत किया जाता है ।
कुड़प्पा क्रम के चट्टानें
समय के साथ अनेक भूगर्भिक हलचलें हुई और धारवाड़ क्रम की चट्टानों का अपरदन और निक्षेपण हुआ जिसके फलस्वरूप कुड़प्पा क्रम के चट्टानों का निर्माण हुआ । यह अवसादी चट्टानें होती है और इसमे भी कोई जीवाश्म नहीं होता है । झारखंड मे कुड़प्पा क्रम के चट्टानों का साक्ष्य नहीं पाया जाता है।
विंध्यन क्रम की चट्टानों
कुडप्पा क्रम के चट्टानों के बाद विंध्यन क्रम की चट्टानों का निर्माण हुआ है | यह परतदार चट्टानें होती है । इनका निर्माण जलज निक्षेपों द्वारा हुआ है । ये चट्टानें अधिकतम प्रायद्वीपीय भारत में पायी जाती हैं और इनकी विभिन्न श्रेणियाँ हैं । इन्हीं श्रेणियों मे से एक का विस्तार सोन नदी घाटी क्षेत्र मे है जहाँ इसे सेमरी श्रेणी के नाम से जाना जाता है । झारखंड मे विंध्यन क्रम की चट्टानों का विस्तार गढ़वा जिले मे है जो सोन नदी घाटी के क्षेत्र मे सम्मिलित है ।
आर्कियन, धारवाड़, कुड़प्पा और विंध्यन क्रम की चट्टानों का निर्माण आद्य महाकल्प मे हुआ है । इसी कालखंड मे झारखंड के दालमा धनजोरी पर्वत, ढालभूम पहाड़ी, कोलहान पहाड़ी का भी निर्माण हुआ है ।
आद्य महाकल्प के बाद या कहें विंध्यन क्रम के चट्टानों के निर्माण के बाद का काल कुछ शांत काल था । इस समय झारखंड के साथ पूरे प्रायद्वीपीय भारत के भूगर्भ मे कोई हलचल नहीं थी । यह कैम्ब्रियन कल्प,आर्डोविसियन कल्प,सिलूरियन कल्प,डेवोनियन कल्प और मध्य कारबोनिफेरस कल्प का कालखंड था जिसका विस्तार 60 करोड़ से लेकर 30 करोड़ वर्ष पूर्व तक है । इस कालखंड को द्रविड़ कल्प भी कहा जाता है। इस कल्प मे निर्मित चट्टानें, भारत में बहुत ही कम क्षेत्रफल में और छिटपुट रूप से मिलती है। झारखण्ड मे इस काल की चट्टानों का साक्ष्य नहीं मिलता है ।
द्रविड़ कल्प के बाद आर्यन कल्प के चट्टानों का निर्माण हुआ है । इन चट्टानों को गोंडवाना, दक्कन ट्रैप, टर्शियरी और क्वाटर्नरी क्रम के चट्टानों मे वर्गीकृत किया जाता है ।
गोंडवाना क्रम की चट्टानें
इस क्रम की चट्टानों का निर्माण पुराजीवी महाकल्प के ऊपरी कारबोनिफेरस कल्प से लेकर मध्यजीवी महाकल्प के जुरैसिक कल्प के बीच हुआ है । इस कालखण्ड मे पूरे पृथ्वी के भूगर्भ मे हलचल हुई जिसे हर्सीनियन हलचल कहा जाता है । जिसके फलस्वरूप प्रायद्वीपीय भारत मे अनेकों दरारों का निर्माण हुआ । इन्ही दरारों से होकर नदियों का प्रवाह आरंभ हुआ । नदीयों की संकरी घाटियों और छिछले जल क्षेत्रों मे अपरदन से प्राप्त पदार्थ एकत्र होने लगे । ये क्षेत्र काफी उपजाऊ बन गए और घने वन उत्पन्न हुए। कालान्तर में यह गिरकर उथले जल में दबने लगे और भूगर्भिक क्रियाओं के कारण ये कोयला क्षेत्रों के रूप में परिवर्तित हो गए। झारखण्ड क्षेत्र मे दामोदर भ्रंश का निर्माण इसी काल मे हुआ है । झारखण्ड मे गोंडवाना क्रम की चट्टानों का विस्तार दामोदर नदी घाटी क्षेत्र से लेकर राजमहल पहाड़ियों तक है ।
दक्कन ट्रैप
मध्यजीवी महाकल्प के क्रीटैशियस कल्प मे प्रायद्वीपीय भारत के पश्चिम मे ज्वालामुखी क्रिया प्रारम्भ हुई । इसके फलस्वरूप लावा का विस्तार प्रायद्वीपीय भारत के विशाल क्षेत्र मे हो जाता है । इसी क्षेत्र को दक्कन ट्रैप के नाम से जाना जाता है । इस क्षेत्र मे तरल लावा के अलग अलग समय मे जमने के कारण सीढ़ीनुमा आकृति का निर्माण हुआ है जो पश्चिम मे सबसे ऊँचा है । पूर्व और दक्षिण की ओर इसकी ऊंचाई कम हो जाती है । इसका विस्तार भारत के गुजरात के कच्छ और काठियावाड़,महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश के मालवा,छत्तीसगढ़,झारखण्ड,तेलंगाना,आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक तक है । झारखण्ड के राँची जिले से पश्चिम का क्षेत्र, लोहरदगा जिला, कुछ पलामू और लातेहार जिलो के क्षेत्र मे दक्कन ट्रैप का निक्षेपण हुआ है । इन्ही चट्टानों के रूपान्तरण के कारण झारखंड मे लेटराइट मिट्टी का निर्माण हुआ है ।
ऊपरी जुरैसिक कल्प से निम्न क्रीटैशियस कल्प तक राजमहल ट्रैप का निर्माण होता है जिसमे राजमहल क्षेत्र मे लावा का उद्गार एंव निक्षेपण होता है । कालांतर मे यह रूपांतरित हो कर लेटराइट मिट्टी मे बादल गयी है ।
राजमहल क्षेत्र मे एक साथ गोंडवाना क्रम की चट्टानें और दक्कन ट्रैप के चट्टानों जैसी विशेषता देखने को मिलती है ।
टर्शियरी क्रम की चट्टानें
क्रीटैशियस कल्प के बाद नूतनजीवी महाकल्प के इयोसीन, ओलिगोसीन, मायोसीन तथा प्लायोसीन कल्प में टर्शियरी क्रम के चट्टानों का निर्माण हुआ है । झारखण्ड मे इस काल की चट्टानों का साक्ष्य नहीं मिलता है ।
परंतु इस कालखण्ड मे हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ है जिसके फलस्वरूप झारखण्ड मे तीन महत्वपूर्ण भौगर्भीक हलचल हुई है । इयोसिन - मध्य ओलिगोसीन कल्प मे झारखण्ड के पाट क्षेत्र का प्रथम उत्थान हुआ है । यह लगभग 06 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है । मध्य मायोसिन मे राँची पठार सहित पाट क्षेत्र का दूसरा उत्थान हुआ जो लगभग 01 – 1.5 करोड़ वर्ष पूर्व मे हुआ है । तीसरा उत्थान सम्पूर्ण छोटा नागपुर का हुआ जो तिरछा था और यह नूतनजीवी महाकल्प के प्लीस्टोसीन कल्प मे हुआ जो लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व मे माना जाता है ।
क्वाटर्नरी क्रम के चट्टानें
इसके अन्तर्गत प्लीस्टोसीन तथा वर्तमान कल्प (होलोसीन) में निर्मित चट्टानों को सम्मिलित किया जाता है। अगर देखा जाए तो झारखंड मे वर्तमान कल्प के जलोढ़ निक्षेप मिलते है । इस तरह की संरचना झारखण्ड के नदी घाटी क्षेत्रो मे मिलती है जैसे राजमहल के पूर्वी भाग, सोन नदी घाटी, स्वर्णरेखा की निचली घाटी आदि । वर्तमान समय मे इन नदियों के साथ अन्य नदियों की घाटियों मे नए नए जलोढ़ो का निक्षेपण निरंतर जारी है ।
उम्मीद है आपको झारखंड की भूगर्भिक संरचना एंव इतिहास । Geological History of Jharkhand (Geological Structure) पर लिखी यह लेख अच्छी लगी होगी और कुछ जानकारी मिली होगी। फिर भी अगर कोई सवाल है तो बेझिझक कॉमेंट मे पुछे। आपकी सहयता करके हमे खुशी मिलेगी। और अंत मे इस पोस्ट को Share करना बिल्कुल न भूले।
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