दोस्तों, क्या आप जानते है ? झारखण्ड के सदान | Jharkhand ke Sadan कौन है ? क्या है उनका इतिहास ? क्या वो झारखण्ड के मूलनिवासी है ? क्या है उनकी संस्कृति और विरासत ? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब को देने का प्रयास इस लेख के जरिये किया गया है | साथ ही साथ हमारी यह भी कोशिश है, की यह लेख JPSC, JSSC या झारखण्ड राज्य के द्वारा ली जाने वाली सभी प्रतियोगिता परीक्षा में आपको भरपूर सहायता करे |
झारखण्ड के सदान | Jharkhand ke Sadan
- परिचय
- सदान कौन है
- शब्द के आधार पर
- भाषा के आधार पर
- धर्म के आधार पर
- प्रजातीय दृष्टिकोण
- सदानों का इतिहास
- पुरातात्विक साक्ष्य
- राजनीतिक दृष्टिकोण
- सदान की जाती क्या है
- सदानों की संस्कृति और विरासत
- सदान समुदाय कौन सा धर्म मानता है
- सदान के विवाह और नाते रिस्तेदारी
- सदानों के परंपरागत रीतिरिवाज
- सदान समुदाय के लोकप्रिय उत्सव और त्योहार
- सदानों के नृत्य एंव गीत संगीत
- सदानों की शारीरिक संरचना एंव वेषभूषा
- सदान समुदाय के घरो के उपयोगी वस्तुएं
1. परिचय
झारखण्ड, भारतीय राज्यों में अपनी विविधता और
समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। इस राज्य के सदान समुदाय भी अपनी
अनूठी पहचान और समृद्ध विरासत के लिए प्रसिद्ध हैं | सदान, झारखण्ड की मूल गैर जनजाति लोग है जिनकी संस्कृति यहाँ की जनजातियों की
संस्कृति से मेल खाती है |
2. सदान कौन है
2.1 शब्द के आधार पर
सदान किन लोगो को कहा जाता है ? सदान शब्द को देखा जाए तो यह सद और आन को जोड़कर बना है | शब्द के अर्थ को समझ कर सदान को परिभाषित करने की कोशिश करें तो विद्वानो मे अलग अलग विचार है | आइए जानते है उनही कुछ विचारों को जो नीचे दी गयी है |
- सद का अर्थ होता है बैठना, विश्राम करना, बस जाना | अगर इस तरह से सदान शब्द का अर्थ निकाला जाए तो जो यहाँ बैठे हुए थे या बसे हुए थे उन लोगो को सदान कहा जाता है |
- सदान शब्द सद मतलब अच्छा से बना है इसीलिए जो लोग अच्छे है वो सदान है | उन्हे सत्य का प्रेमी, पुजारी एंव कर्मी भी कहा गया है क्यूंकी सदान शब्द सत, सत्य, सच से बना है |
- सदान शब्द सभ्यन का अपभ्रंश है इसीलिए झारखण्ड के सभ्य लोगो के लिए सदान कहा गया और उन्हे यहाँ के जनजातियों से अधिक सभ्य माना गया है |
- सदान शब्द सादा, साफ से बना है और यहाँ की जनजातियों से अधिक साफ या गोरा होने के कारण इन्हे सदान कहा गया है |
- सदान शब्द को नि और षाद को उल्टा रूप देकर ध्वनि परिवर्तन कर दिया गया है और सदान और सदानी शब्द बना दिया गया है |
- सदानों का एक बहुत बड़ा वर्ग कबीर पंथी रहा है इसीलिए सदान शब्द को सतनाम का पर्यायवाची भी बताया गया है |
2.2 भाषा के आधार पर
भाषाई दृष्टिकोण से सदानों को अगर समझने की कोशिश करें तो हम यह पाते है की सदान खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनियाँ एंव कुरमाली भाषा अपनी मातृभाषा के रूप मे बोलती है | इन भाषाओं को बोलने वाले लोगो को सदान कहा जा सकता है |
2.3 धर्म के आधार पर
धर्म के दृष्टिकोण से सदानों को अगर समझने की कोशिश करें तो हम यह पाते है की सदान चाहे किसी भी धर्म का हो और उसकी मातृभाषा खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनियाँ एंव कुरमाली भाषा है तो वो सदान है | इसमे जैन धर्मावलम्बी भी शामिल है |
2.4 प्रजातीय दृष्टिकोण
प्रजातीय दृष्टिकोण से सदानों को अगर समझने की कोशिश करें तो हम यह पाते है की सदान आर्य है | कुछ द्रविड़ वंशी और आग्नेय कुल के लोग भी सदान है |
3. सदानों का इतिहास
3.1 पुरातात्विक साक्ष्य
सदानों का इतिहास झारखंड के सांस्कृतिक और सामाजिक
विकास के प्रमुख अंगों में से एक है। यह समुदाय प्राचीन समय से ही इस क्षेत्र में अपनी
उपस्थिती दर्ज करवाता रहता है | पुरातात्विक अवशेषों से ज्ञात होता
है की झारखण्ड मे असुरों से पहले भी कोई सभ्य प्रजाति यहाँ निवास करती थी | असुरों द्वारा लोहे को अधिक मात्रा मे गलाना सिर्फ अपने उपयोग के लिए
नहीं होता होगा | ऐसा प्रतीत होता है की मुण्डा और उराँव
जनजाति के झारखण्ड मे प्रवेश करने से पहले भी कोई जाती यहाँ निवास करती थी | हम यह मान सकते है की वह प्रजाति सदानों की रही होगी जो यहाँ की
मूलनिवासी थी |
3.2 राजनीतिक दृष्टिकोण
राजनीतिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाए तो मुण्डाओं और
उराँवों की पंचायत व्यवस्थाओं मे सहायक के रूप मे लाल,
पाण्डे, ठाकुर, दीवान आदि होते थे जो
मुण्डा, मानकी, पाहन, महतो के खूंट के नहीं होते थे तो वह कौन थे ? जाहीर
सी बात है वह सादन होते होंगे तभी तो पंचायत व्यवस्था चलती थी |
4. सदानों की जाती क्या है
सदानों मे वैसी जातियाँ मौजूद है जो देश के अन्य
हिस्सों मे है और झारखंड मे भी हैं जैसे – ब्राह्मण, राजपूत,
तेली, माली, कुम्हार, कुरमी, सोनार, कोयरी, अहीर, बानियाँ, डोम, चमार, दुसाध, ठाकुर और नाग
जाती इत्यादि |
बड़ाईक, देसावली, पाइक,
धानुक, राउतिया, गोड़ाईत,
घासी, भुइयां, पान,
परमाणिक, तांती, स्वासी,
कोस्टा, झोरा, रक्सेल,
गोसाई, बरगाहा, बाउरी,
भाट, बिंद, कांदु,
लोहड़िया, खंडत, सराक,
मलार आदि जातियाँ सिर्फ छोटनागपुर क्षेत्र मे मिलती है |
कुछ जतियों के गोत्र का मूल स्थान यहाँ से बाहर की है
परंतु वह भी सदान है जैसे - अवधिया, कनौजिया, तिरहुतिया,
गौड़, पूर्विया, पछिमाहा,
दखिनाहा इत्यादि |
कुछ जतियों के गोत्र बिलकुल यहाँ के जनजातियों की तरह है |
5. सदानों की संस्कृति और विरासत
5.1 सदान समुदाय कौन सा धर्म मानता है
प्राचीन काल से ही सदान और यहाँ की जनजातियाँ एक दूसरे से घुलमिल कर रहती आई है जिसके कारण एक साझा संस्कृति का विकास हुआ है | सदानों मे आर्यपन के साथ जनजातियों की झलक भी देखने को मिलती है | हिन्दू धर्म के देवी देवताओं की पुजा अर्चना के साथ वह अपने कुल देवी देवताओं की पुजा अर्चना भी करता है | झारखण्ड मे चैतन्य महाप्रभु के आगमन से प्रभावित होकर कुछ सदानों ने वैष्णव परम्परा अपना ली है | जैन धर्म का प्रभाव भी सदानों पर पड़ा है जैसे सराक जाती के लोग सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करते है तथा मांस मछ्ली का सेवन नहीं करते है | कुछ सदान कबीरपंथी हो चले है | सोलहवीं सदी के बाद से इस्लाम धर्म के अनुयायी भी यहां बस गए हैं, जिन्हें बाद में सदान कहा गया है | कहने का तात्पर्य यह है की झारखण्ड के सदान विभिन्न धर्म को मानने वाले लोग है जिसके कारण एक ओर गुरु पुरोहित की परम्परा है तो दूसरी ओर मुल्ला मौलवियों की प्रथा भी है |
5.2 सदान के विवाह और नाते रिस्तेदारी
सदान समाज पितृ सत्तात्मक होता है |
मातृ – पितृ कुल मे वैवाहिक संबंध वर्जित है | सदानों के
यहाँ वर पक्ष ही कन्या ढूँढता है | वर पक्ष द्वारा कन्या
मूल्य, डाली दाम या डाली टाका दिया जाता है और कन्या को
व्याह कर ले जाते है | विवाह मे कन्या के गाँव वाले हर तरह
से मदद और सहयोग करते है जैसे वह कन्या पूरे गाँव की बेटी हो | सदानों मे तिलक दहेज की परम्परा नहीं होती है परंतु समय के साथ यह
कुरीतियाँ सदानों मे भी आ गयी है |
5.3 सदानों के परंपरागत रीतिरिवाज
सहिया संस्कृति
सदानों मे सहिया संस्कृति देखने को मिलती है जो एक
सामाजिक समरसता का ज्वलंत उदाहरण है | इस संस्कृति के तहत दो लोग जो
विभिन्न जाती, धर्म, वर्ग, समुदाय या स्तर का होता है आपस मे सहिया (दोस्त) बनते है और एक एक दूसरे
को बराबरी का दर्जा देते हुए सुख दुख का साथी बन जाते है |
सहिया का नाता पीढ़ी दर पीढ़ी तक के लिए जुड़ जाता है |
मदइत परम्परा
इस परम्परा के अंतर्गत सदान एक दूसरे की मदद करते है
और कोई भी छोटे बड़े काम को समूहिक तौर से करते है | इसके लिए न तो कोई मजदूरी ली
जाती है न तो कोई मजदूरी दी जाती है | जिसके यहाँ काम हो रहा
होता है वहाँ खाने पीने की व्यवस्था होती है |
5.4 सदानों के लोकप्रिय उत्सव और त्योहार
उत्सव और त्योहार सदान समुदाय के लोगों के जीवन में
खास महत्व रखते हैं और सामुदायिक एकता और आनंद का संवाद बढ़ाते हैं |
यहाँ की जनजातियाँ और सदान मिलकर त्योहार को मानते है | कुछ
प्रमुख त्योहार हैं जैसे – मंडा पर्व, कर्मा, टुसू, जीतिया, सोहराय, मकर संक्रांति, तीज, सरहुल
इत्यादि | इनके अतिरिक्त होली, दिवाली, दशहरा, काली पुजा भी धूम धाम से मनाया जाता है | इस्लाम धर्म को मानने वाले ईद, मुहर्रम आदि मानते
है |
5.5 सदानों के नृत्य एंव गीत संगीत
सदान समुदाय के नृत्य और गीत संगीत उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये नृत्य और गीत सामूहिक रूप से अखरा मे होता है | अखरा सादनों के गाँव की पहचान होती है | नृत्य और गीत संगीत विभिन्न उत्सव, त्योहार, शादी विवाह पर किया जाता है | कुछ प्रमुख नृत्य हैं जैसे – डमकच, झुमटा, झूमर आदि सामूहिक नृत्य है जो आम महिलाएँ अखरा में या घर – आँगन मे करती है | इसके अतिरिक्त छउ नृत्य, नटुआ नृत्य, नचनी नृत्य, घटवारी नृत्य, महराई आदि विविध प्रकार के नृत्य होते हैं।
सदान समुदाय के गीत संगीत में भी विविधता और समृद्धि है। यह कई प्रकार के होते है जिसके नाम गीत के राग या सुर पर दिया गया है | जैसे – सोहराय, डमकच, अंगनाई या जनानी झूमर, मरदानी झूमर, झुमटा, सोहर, विवाह गीत, फगुआ, रंग, पावस, उदासी, आदि।
6. सदानों की शारीरिक संरचना एंव वेषभूषा
सदानों मे आर्य, द्रविड़,
और आस्ट्रिक कुल के लक्षण उनके शारीरिक गठन मे दिखाई देते है | फिर भी यह जनजातियों से अलग दिखते है | इनका रंग
काला, गोरा, सांवला तीनों होता है | नाटे, लंबे एंव माध्यम तीनों कद होता है |
वेषभूषा की अगर बात की जाए तो बिहार और बंगाल मे
प्रचलित वस्त्र धारण करते है | जैसे – धोती,
कुर्ता, गमछा इत्यादि | वर्तमान समय के
हिसाब से भी वस्त्र धारण करते है जैसे – पैंट, शर्ट, सलवार कुर्ता, साड़ी इत्यादि |
बिहार और बंगाल मे प्रचलित आभूषण सदानों मे भी
प्रचलित है | यहा की जनजातियों मे पहने जाने वाले आभूषण भी प्रचलित है | जैसे – पोला, साँखा, कंगन, बिछिया, हार, पईरी, हंसली, कंगना, सिकरी, छूछी, बुलाक, बेसर, नथिया, तरकी, करन फूल, मंगटीका, पटवासी, खोंगसों
इत्यादि |
सदानों मे गोदना करवाने का भी प्रचालन होता है |
7. सदान समुदाय के घरो के उपयोगी वस्तुएं
सदानों के घरो मे पीतल एंव कांसा के बर्तन रखना समृद्धि का प्रतीक माना जाता है | अभी भी गाँव मे मिट्टी के बर्तन प्रयोग मे लाये जाते है जैसे – हँडिया, गगरी, चुका, ढकनी इत्यादि | अन्य सामानो मे चटाई, पीढ़ा, मचिया, लेदरा, खटिया, चौकी, हरका, पेटी, टंगना, माचा प्रमुख वस्तुएं है | मुसलमान परिवारों मे इन सामानो के अलावा नेरुआ लोटा या बधना जरूर होता है |
समूहिक भोज मे पत्तल, दोना का उपयोग होता है |
सदान समुदाय शिकारो मे भी दिलचस्पी रखता है और शिकार मे उपयोग होने वाले वस्तुए जैसे – मछ्ली पकड़ने के लिए जाल, कुमनी, बंसी डांग, पोलई, घोघी इत्यादि | इनके अलावा और भी हतियार अपने घरो मे रखता है जैसे - तीर धनुष, तलवार, भाला, लाठाचोंगी, गुलेल इत्यादि |
सदान समुदाय कृषि, पशुपालन के साथ साथ व्यवसाय से जुड़ा हुआ समाज है | इनके घरो मे कृषि मे उपयोग होने वाली अनेक वस्तुएं मिलती है जैसे – कुदाल, खुरपी, हल, मेइर, करहा, टांगा, ढेलमुंगरा, हँसुआ, सूप, बढ़नी, चलनी, आखईन, जोती, बहींगा, ढेंकी, टोकी, दउरा, खाँची, गाड़ी, सगड़, रुखना, बसुला, आरी, रंदा इत्यादि |
उम्मीद है आपको झारखण्ड के सदान - अवधारणा पर लिखी यह लेख अच्छी लगी होगी और कुछ जानकारी मिली होगी। फिर भी अगर कोई सवाल है तो बेझिझक कॉमेंट मे पुछे। आपकी सहयता करके खुशी मिलेगी। और अंत मे इस पोस्ट को शेयर करना बिल्कुल न भूले।
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